Germany: Apples planted on tree for the first time on Christmas Day

Germany: Apples planted on tree for the first time on Christmas Day

Germany: Apples planted on tree for the first time on Christmas Day

जर्मनी से शुरू हुई पेड़ सजाने की परंपरा, सेब को सोने के वर्क में लपेटकर किया जाता था डेकोरेट क्रिसमस डे के सेलिब्रेशन पर पेड़ों को सजाने का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। प्राचीन काल में क्रिसमस ट्री को जीवन की निरंतरता का प्रतीक माना जाता था। इसे ईश्वर की ओर से लंबे जीवन का दिया जाने वाले आशीर्वाद के रूप में देखा जाता रहा है। मान्यता थी कि इसे सजाने से घर के बच्चों की आयु लम्बी होती है। इसी कारण क्रिसमस डे पर क्रिसमस ट्री को सजाया जाने लगा। कहते हैं कि हजारों साल पहले उत्तरी यूरोप में इसकी शुरुआत हुई थी, जब क्रिसमस के मौके फर ट्री (सनोबर) को सजाया गया था। इसे चेन की मदद से घर के बाहर लटकाया जाता था। ऐसे लोग जो पेड़ को खरीद पाने में अमसर्थ थे, वे लकड़ी को पिरामिड आकार देकर सजाते थे।


19वीं सदी से यह परम्परा इंग्लैंड में पहुंची, जहां से सम्पूर्ण विश्व में यह प्रचलन में आ गई। क्रिसमस ट्री को डेकोरेट करने के साथ इसमें खाने की चीजें रखने का रिवाज सबसे पहले जर्मनी में ही शुरू हुआ, जब इसमें सोने के वर्क में लिपटे सेब, जिंजरब्रेड से सजाया गया। मान्यता है कि क्रिसमस ट्री का सम्बंध प्रभु यीशु मसीह के जन्म से है। जब उनका जन्म हुआ तब उनके माता पिता मरियम एवं जोसेफ को बधाई देने वालों में देवदूत भी शामिल थे। जिन्होंने सितारों से रोशन सदाबहार फर को उन्हें भेंट किया। तब से ही सदाबहार क्रिसमस फर के पेड़ को क्रिसमस ट्री के रूप में मान्यता मिली।

फेस्टिवल से पहले ईसाई धर्म के लोग लकड़ी से क्रिसमस ट्री तैयार करते हैं और फिर इसे डेकोरेट करते हैं। इसमें ज्यादातर मोमबत्तियां और टॉफियां, घंटी और अलग-अलग रंगों के रिबन का इस्तेमाल किया जाता है। क्रिसमस ट्री पर छोटी-छोटी मोमबत्तियां लगाने का प्रचलन 17वीं शताब्दी से शुरू हुआ था।